एक बार श्री राम जी ने अपने दरबार में दूर दूर से राजाओं को बुलाया था । उनको अछे राज्य और राजनीती के विषय में बताने के लिए। महल के एक द्वार पर जहाँ से रजा महाराजा अन्दर आरहे थे वहीँ पर नारद जी आकार खड़े हो गए और वहां पे एक राजा को रोक कर उससे बात करने लग गए । उन्होंने राजा को बोला की अन्दर जाना तो वहां पे रामजी को प्रणाम करना और दुसरे ऋषियों को भी पर विश्वामित्र जी को मत प्रणाम करना । राजा ने पुछा ऐसा क्यों भगवन क्यों नहीं करूंगा उनको । तो नारद जी ने कहा की तुम क्षत्रिय हो और विश्वामित्र भी तो उनको प्रणाम करने की ज़रुरत नहीं है । राजा बेचारा आगया उनकी बैटन में और उसने ऐसा ही किया । इस कारन से विश्वामित्र जी बहुत गुस्सा हुए , और राम जी से बोले की तुम्हारे दरबार में मेरा अपमान हुआ है अतः सूरज ढलने से पहले तुम राजा को मृतुदंड दो वरना मई तुमको श्राप दूंगा । राम जी बोले की अभी वनवास से लौटा हूँ भगवन आप क्रोध न करें मई आज संध्या से पहले इसको मार दूंगा। राजा ने ये सुना तो घबराकर नारद जी के पास आये और बोले की ये क्या किया प्रभु अब मेरे प्राण कैसे बचेंगे । तब नारद जी बोले " मत घबराओ प्यारे , चिंता क्यों करते हो । कल तो शाम तो दूर है प्यारे अभी क्यों मरते हो । ध्यान लगा के सुन लो जो मै तुम्हे बातों । बाल न बांका होगा समझो जो समझाऊँ । हनुमान जी के घर जाओ , अंजनी माँ को शीश नवाओ । उनको साडी बात बताना ,कहना मैया मुझे बचाओ । हनुमान जी तुम्हरी रक्षा करेंगे मेरे प्यारे , संकट मोचन नाम है उनका कष्ट मिटावन हारे। " राजा ने ऐसा ही किया अंजनी माँ के पास जाके अपनी सारी कथा बताई और प्राण बचने के कहा । माता ने कहा की मेरा पुत्र जब घर आयेगा तो उससे कहूँगी अभी तुम बाहर जाके बैठो। हनुमान जी जब घर ए तो माता अंजनी ने प्यार से भोजन कराया और कहा की हनुमान आज मै तुमसे कुछ मांगना चाहती हूँ । हनुमान जी बोले वाह माता आज तो बड़ा ही शुभ दिन है मांगो माता जो मांगोगी दूंगा प्राण भी मांगोगी तो चरणों में रख दूंगा । अंजनी माता ने कहा की एक राजा ने हमारी शरण ली है । उसको किसी ने मारने की प्रतिज्ञा की है । तुमको उसकी रक्षा करनी होगी । हनुमान जी हंस के बोले माता बस इतनी सी बात मै तुम्हारे चरण छु कर श्री राम जी की सौगंध खाता हूँ की यदि उस राजा के प्राणों की रक्षा करूंगा . हनुमान जी ने पुछा की माँ वो राजा है कहाँ तो अंजनी माँ बोली की बाहर प्रतीक्षा कर रहा है । हनुमान जी जब बाहर गए तो राजा उनके चरणों में गिर के बोला की महाराज
" अनजानी लाल मै शरण तुम्हारी मेरी रक्षा कीजे , संकटमोचन नाम तुम्हारा अभय दान मोहे दीजे " हनुमत बोले मत घबराओ चिंता त्यागो सारी , काल अगर स्वयं भी आए रक्षा करून तुम्हारी ।
हनुमान जी बोले की किसने तुमको मरने को कहा है तो राजा बोला की मै उनका नाम नहीं बतओंगा वरना आप प्रतिज्ञा तोड़ देंगे तो हनुमान जी बोले अरे पागल मै श्री राम भक्त हूँ प्राणों से बढ़ के भी वचन है और फिर नाम नहीं बताओगे तो रक्षा कैसे होगी । राजा बोला तो सुनिए महाराज ................. राम जी ने ही वचन दिया है प्राण मेरे लेने का उन्होंने ही संकल्प किया है मृतुदंड देने का । ये सुन कर हनुमान जी थर -थर कंपन लागे । बोले अरे पागल राजा मै उन चरणों का सेवक हूँ उनसे कैसे तुम्हे बचाऊँ , अरे जिनसे काल स्वयं भय खाता है उनके सामने कैसे आऊंगा । पर अब तो वचन दे चूका हूँ । हनुमान जी राजा से बोले की जाओ और हाथ में राम नाम का ध्वज लेकर राम का नाम लेते रहो । और खुद महल को चले गए । वहां राम जी से कहा की प्रभु आज मै आपसे कुछ मांगना चाहता हूँ तो राम जी बोले अवश्य हनुमान जो भी चाहो तुमको अवश्य दूंगा तो हनुमान जी ने सोचा की अगर राजा के लिए जेवंदन मांगूंगा तो राम जी दे देंगे और उनकी प्रतिज्ञा रह जाएगी। अतः मै ये नहीं मांगूंगा , राम जी बोले क्या सोच रहे हो क्या मांगना है तो हनुमान जी बोले "भगवन आधे दिन की छुट्टी दे दीजिये " राम जी बोले बस इतनी सी बात
ठीक है जाओ। हनुमान जी उसी पर्वत पे आगये जहाँ राजा था और बोले की राम जी आरहे हैं मै उनके सामने नहीं आऊंगा तुम राम राम का जाप करते रहो कुछ नहीं होगा । राजा ने ऐसा हिकिया। राम जी ए तो देखा की राजा राम राम राम राम जप रहा है। उन्होंने बाण चलाया पर कोई असर नहीं हुआ तो राम जी वापस महल लौट आये विश्वामित्र ने पुछा की राजा को मारा ? तो राम जी बोले की मै कैसे मरता वो तो राम राम जप रहा है मेरा कोई बाण उसको नहीं मर पा रहा .तो विश्वामित्र बोले की अच्छा है तो मै तुमको श्राप दे देता हूँ तो राम जी बोले नहीं गुरुदेव मै अभी राम बाण लेकर जाता हूँ पर वहां हनुमान जी ने राजा से कहा की राम बाण लेकर प्रभु आरहे हैं । अब तुम जय सिया राम जय जय सिया राम कहो । राजा वैसे ही कहने लगा । राम जी आये तो देखा की ये तो सेता का भक्त बन गया है इसको कैसे मारूं पुनः बाण चलाया पर राजा बच गया , पुनः राम जी महल लौट आये विश्वामित्र को बताया तो वे क्रोध से बोले की अब मै जाता हूँ तो राम जी बोले की नहीं गुरु देव अब मै शक्ति बाण लेकर जाता हूँ । हनुमान जी ने कहा की राजन अब तो राम जी शक्ति बाण ला रहे हैं अब क्या करें अब कैसे रक्षा होगी तुम्हारी । परन्तु तब तक राजा भक्त और भगवान् के इस सम्बन्ध को समझ चूका था रजा बोला हनुमानजी अब मई जनता हूँ मेरी रक्षा कैसे होगी और जोर जोर से गाने लगा "जय जय सिया राम जय जय हनुमान जय जय हनुमान जय जय हनुमान जय जय सिया राम जय जय हनुमान" राम जी ने जब रजा को हनुमान जी का नाम लेते देखा तो उनको और आश्चर्य हुआ उन्होंने सोचा की अब तो ये हनुमान भक्त बनगया पर फिर भी उन्होंने शक्ति बाण चलाया पर ये क्या रजा को कुछ भी नहीं हुआ । राम जी समझ गए और बोले की हे हनुमान तुम जिसके रक्षक हो उसका समस्त संसार में कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता मई इस रजा को नहीं मर सकता तभी विश्वामित्र वहां ए नारद ने उनको साडी बात बताई तो उन्होंने रजा को क्षमा कर दिया । नारद जी ने कहा की अभी तो सबको राम जी के दर्शन हो रहे है पर कलयुग में ये सौभाग्य किसी को नहीं मिलेगा । इसी लिए मैंने राम से बढ़ कर राम जी के नाम का वर्णन किया है । और जिसके रक्षक हनुमान जी है उसको कोई संकट नहीं आयेगा ................
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