रावन,श्री राम,माता सीता द्वारा सागर तट पर पूजा
श्री राम जी जब सागर तट तक ए तो उन्होंने आगे के मार्ग के लिए समुद्र देवता की पूजा का निश्चय किया । इस विधान के लिए अपने इष्ट देव की प्रतिमा की स्थापना का भी विधान था । श्री राम भगवन शिव के परम भक्त थे अतः शिवलिंग की स्थापना की आवश्यकता थी , अतः क्षेत्र के सबसे विद्वान् ब्रह्मिन की आवश्यकता थी । तब श्री राम में रावन को पुजारी बन्ने हेतु निमंत्रण भेजा .रावन को ज्ञात था की विवाहित होने के नाते माता सीता उनकी अर्धांगिनी है अतः उनके बिना कोई अनुष्ठान संपन्न नहीं हो सकता । रावन माता सीता को लेकर सागर तट पर आया और वहां पर संपूर्ण विधि विधान द्वारा यज्ञ और पूजा संपन्न की और पुनः माता सीता को लेकर लंका जाने लगा , चूँकि वह वहां पर पुजारी के रूप में था अतः यजमान होने के नाते श्री राम का धर्म था की वह रावन को कुछ दान दें ।
अतः रावन ने उनसे पुछा की राम इस ब्रह्मिन को क्या दक्षिणा दोगे , श्री राम बोले की अयोध्या के राज कुमार से कितना धन और स्वर्ण चाहता है एक ब्रह्मिन , तो रावन ने उत्तर दिया की वन में रहने वाला कुमार त्रिलोक विजेता और सोने की लंका के रजा को कितना स्वर्ण दे सकता है । इस पर श्री राम चुप हो गए । तब रावन बोला की राम जब मई मरने लग जाऊं तो मेरे अंत समय में तुम मेरे पास आजाना । यही मेरी दक्षिणा होगी ................................
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