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Wednesday, July 28, 2010


जिस स्थान पे भगवान की कथा होती है उस स्थान पे बैठने वालों को अपने कान और मुह दोनों खोलने चाहिए। अर्थात कथा को ध्यान से सुनना चाहिए तथा भगवान की जय भी बोलनी चाहिए । यदि भक्ति के लिए न हो तो अपने स्वार्थ के लिए ही बोलना चाहिए। इसके पीछे भी एक रोचक तथ्य है । जहाँ पर भी भगवान की कथा होती है उस स्थान पे एक चुम्बकत्व उत्पन्न हो जाता है । और संसार का सब यश वैभव सम्पन्नता और सुख आते है । सभी ३३ करोड़ देवी देवता आते हैं । और साथ ही साथ संसार का पाप लोभ बुराई और द्वेष भी आते हैं । ये भी भागवान से कहते है की हमको भी भीतर आने दीजिये । भगवान कहते है की तुमको तो मेरे नाम से चिढ है । इसलिए जो भी कथा न सुन रहा हो उसके कान में जाकर बैठ जा जो जय न कहे उसके मुह में जा के बैठ जा और उसके साथ उसके घर चला जा और उसको दुखी कर । अतः भगवान के भजम में सदा मन और आत्मा शुद्ध करके रहना चाहिए ।

Sanjivani Booti – which Lord Hanuman brought to save the life of Lord Ram's brother Lakshman – is being researched upon by scientists for its survival instincts. Sanjeevani means ‘one that infuses life.’ The Sanjeevani plant is well known for its medicinal properties and is mentioned in Ayurveda and other ancient texts.

National Botanical Research Institute (NBRI) is trying to identify the gene that helps Sanjivani Booti to survive severe droughts. The plant existed before 300 million years and comes under a group of plants which were the first vascular plants on earth.

When there is no moisture the plant curls up and assumes the form of a brown crust. Sanjivani Booti regains its original form when it comes in contact with water or moisture. The plant is found throughout India and it grows in rocks and arid lands.





















Om Parvat (or Adi Kailash, or Chhota Kailash, or Baba Kailash, or Jonglingkong) is an ancient holy Hindu Himalayan mountain peak at an altitude of 6191 m. It's part of the Himalayan Range lying in the Darchula district of western, Nepal near Sinla pass, similar to Mount Kailash in Tibet.

The snow deposition pattern gives the impression of 'AUM' (ॐ) written over it, which is a sacred Hindu Mantra or chant. Beautiful 'Parvati lake' and 'Jonglingkong lake' are situated near Om Parvat. The Jonglingkong lake is sacred like Mansarovar to the Hindus.


The opposite to this peak there is a mountain called Parwati Muhar, and snow over it shines like crown in sunlight. This peak was climbed for the first time by an Indo-British team including Martin Moran, T. Rankin, M. Singh, S. Ward, A. Williams and R. Ausden. Climbers did not climb above 6,000 M, due to sacred nature of the peak!

Monday, July 26, 2010


हनुमान जी को सदा अजर और अमर रहने का वरदान प्राप्त है भगवन श्री राम और माता सीता से । अजर अर्थात जिसमे कभी जरावस्था यानि की वृद्धावस्था न ए और अमर अर्थात जो कभी न मरे । लव कुश के जन्म के पश्चात् माता सीता धरती माता में समाहित होने जा रहीं थी और भगवन राम भी सरयू नदी में जलसमाधि ले कर बैकुंठ धाम जाने को तैयार थे । जब हनुमान जी को ये बात पता चली तो वो अत्यंत ही दुखी मन से दौड़ कर भगवान् के पास गए और बोले की भगवन आप कहीं मत जाइये वर्ना मै यहाँ क्या करूंगा । माता सीता से बोले की माता मै भी आपके साथ ही जाऊँगा वरना आप कहीं मत जाइये । माता सीता बोली कि हनुमान जन्म लेने वाले को संसार से जाना ही पड़ता है , परन्तु तुम तो सदा ही अजर और अमर हो । तुमको तो स्वयं प्रभु ने ये वरदान दिया है । हनुमान बोले कि तो मै आज्ये वरदान और साडी पदवी को त्याग दूंगा । ये सुन माता सीता श्री राम से बोली कि प्रभु ये हनुमान तो अपना अमरत्व त्याग रहा है। राम जी बोले कि अरे पागल ये अमरत्व पाने को देवता भी तरसते हैं बड़े बड़े योगी इसके लिए वर्षों तपस्या करते हैं पर नहीं पासकते और तुम इसको त्याग रहे हो । हनुमान जी बोले कि भगवन आपसे दूर रह कर मै भला कैसे जीवित रह सकता हूँ । राम जी बोले के हनुमान अभी तो त्रेतायुग है इसके बाद द्वापर युग में पाप और बढ़ जाये गा और कलयुग में तो पाप कि कोई सीमा ही नहीं होगी । तब संसार में तुम ही सबकि रक्षा करना , प्रभु भक्तों को संरक्षण देना । हनुमान जी बोले कि हे प्रभु अगर आपकी ऐसी आगया है तो मै सदा धरती पे ही रहूँगा परन्तु मै आपसे कुछ मांगना चाहता हूँ आप देंगे ? राम जी बोले कि अवश्य दूंगा तो हनुमानजी बोले कि मुझको ये आशीर्वाद दें कि मै जिस समय में जिस कल में जिस स्थान पे भी आपकी पूजा या कथा हो रही हो वहां जाकर विराज सकू । माता सीता बोली दे दीजिये वरदान प्रभु तो राम जी बोले कि साईट तुम नहीं जानती कि ये क्या मांग रहा है । ये अनगिनत शरीर और काल चक्र से मुक्ति मांग रहा है ये भूत भविष्य वर्त्तमान सब कल में एक साथ उपस्थित रहना चाहता है , माता सीता बोली कि तो क्या हुआ मेरा सबसे प्रिय है हनुमान और आपका परम भक्त है इसको ये वरदान अवश्य दीजिये । तब श्री राम जी ने उनको ये वरदान दिया और हनुमान जी जहाँ कहीं भी श्री राम जी कि कथा होती है वहां आकर विराजमान होते हैं ।

घंटाकर्ण देवता
पूजा के समय सभी घंटा अथवा घंटी बजाते हैं परन्तु इस के वास्तविक महत्व से परिचित नहीं है । घंटा वास्तव में घंटाकर्ण देवता होते हैं । और पूजा में विशेषकर आरती के समय इसे बजाने का विशेष महत्त्व है । इसके पीछे एक प्राचीन कथा है । घंटाकर्ण वास्तव में एक राक्षस था । उसके कानो में बड़े बड़े घंटे लगे हुए थे जो बहुत आवाज करते थे और वो हमेशा उसको बजता चलता था । भगवान् विष्णु का वो घोर विरोधी था और भगवन शिव का परम भक्त था । एक दिन वो कैलाश पर्वत पे जाकर भगवन शिव से बोला की भगवन अब मुझको राक्षस योनी से मुक्त करके मोक्ष प्रदान करें । तो भगवन शिव बोले बहुत अच्छी बात है ये तो , तुम बद्रिकारेश्वरधाम में जाकर भगवन विष्णु से आग्रह करना वो ही तुमको मोक्ष प्रदान करेंगे । नारायण से तो वो बैर रखता था पर भगवन शिव की आज्ञा से वो चला गया .भगवन विष्णु को ज्ञात हुआ तो वो भगवन शिव का रूप बना के बैठ गए वहां पर । जब राक्षस ने देखा की यहाँ पर विष्णु तो है नहीं पर मेरे आराध्य देव भगवन शुव बैठे है तो उसने अपने कानो के घंटे बजाने बंद कर दिए । और बड़ी देर तक वहां बैठा रहा । वहीँ ऊपर नारद जी आगये और भगवन विष्णु को पहचान के जोर से बोले
नारायण नारायण । जैसे ही राक्षस ने ये सुना वो चौंक गया की अरे यहाँ नारायण कहाँ है । उसने जैसे ही भगवन शिव की ओर देखा तो देखा की वहां भगवन विष्णु बैठे है । भगवन बोले की हे घंटाकर्ण अनजाने में ही सही तुमने भक्ति भाव से मेरा सम्मान किया है । राक्षस बोला की हे प्रभु तब कुछ ऐसा करिए की मै राक्षस होने के कारण संसार में तुच्छ न मन जाऊं । भगवन बोले की हे घंटाकर्ण आजसे तुम सदा मंदिरों में वास करोगे । मेरी पूजा तुम्हारे नाद के बिना अधिरी होगी । तो वहां पर भगवन का वहां गरुड़ बोला की प्रभु आप इसका उद्धार कर दिए कुछ कृपा मुझपर भी कर दीजिये तो भगवन बोले की गरुड़ तुम आजसे इस घंटाकर्ण के ऊपर विराजोगे । जहाँ इसका नाद होगा और तुम इसपर सवार होगे वहां मै स्वयं आऊंगा । इसी लिए हर पूजा में घंटे का नाद अवश्य करना चाहिए , घंटे पर इसी लिए कोई अन्य सजावट नहीं होती मात्र ऊपर गरुड़ होता है ।

Sunday, July 25, 2010

राम से बड़ा राम का नाम

एक बार श्री राम जी ने अपने दरबार में दूर दूर से राजाओं को बुलाया था उनको अछे राज्य और राजनीती के विषय में बताने के लिए। महल के एक द्वार पर जहाँ से रजा महाराजा अन्दर आरहे थे वहीँ पर नारद जी आकार खड़े हो गए और वहां पे एक राजा को रोक कर उससे बात करने लग गए उन्होंने राजा को बोला की अन्दर जाना तो वहां पे रामजी को प्रणाम करना और दुसरे ऋषियों को भी पर विश्वामित्र जी को मत प्रणाम करना राजा ने पुछा ऐसा क्यों भगवन क्यों नहीं करूंगा उनको तो नारद जी ने कहा की तुम क्षत्रिय हो और विश्वामित्र भी तो उनको प्रणाम करने की ज़रुरत नहीं है राजा बेचारा आगया उनकी बैटन में और उसने ऐसा ही किया इस कारन से विश्वामित्र जी बहुत गुस्सा हुए , और राम जी से बोले की तुम्हारे दरबार में मेरा अपमान हुआ है अतः सूरज ढलने से पहले तुम राजा को मृतुदंड दो वरना मई तुमको श्राप दूंगा राम जी बोले की अभी वनवास से लौटा हूँ भगवन आप क्रोध करें मई आज संध्या से पहले इसको मार दूंगा। राजा ने ये सुना तो घबराकर नारद जी के पास आये और बोले की ये क्या किया प्रभु अब मेरे प्राण कैसे बचेंगे तब नारद जी बोले " मत घबराओ प्यारे , चिंता क्यों करते हो कल तो शाम तो दूर है प्यारे अभी क्यों मरते हो ध्यान लगा के सुन लो जो मै तुम्हे बातों बाल बांका होगा समझो जो समझाऊँ हनुमान जी के घर जाओ , अंजनी माँ को शीश नवाओ उनको साडी बात बताना ,कहना मैया मुझे बचाओ हनुमान जी तुम्हरी रक्षा करेंगे मेरे प्यारे , संकट मोचन नाम है उनका कष्ट मिटावन हारे। " राजा ने ऐसा ही किया अंजनी माँ के पास जाके अपनी सारी कथा बताई और प्राण बचने के कहा माता ने कहा की मेरा पुत्र जब घर आयेगा तो उससे कहूँगी अभी तुम बाहर जाके बैठो। हनुमान जी जब घर तो माता अंजनी ने प्यार से भोजन कराया और कहा की हनुमान आज मै तुमसे कुछ मांगना चाहती हूँ हनुमान जी बोले वाह माता आज तो बड़ा ही शुभ दिन है मांगो माता जो मांगोगी दूंगा प्राण भी मांगोगी तो चरणों में रख दूंगा अंजनी माता ने कहा की एक राजा ने हमारी शरण ली है उसको किसी ने मारने की प्रतिज्ञा की है तुमको उसकी रक्षा करनी होगी हनुमान जी हंस के बोले माता बस इतनी सी बात मै तुम्हारे चरण छु कर श्री राम जी की सौगंध खाता हूँ की यदि उस राजा के प्राणों की रक्षा करूंगा . हनुमान जी ने पुछा की माँ वो राजा है कहाँ तो अंजनी माँ बोली की बाहर प्रतीक्षा कर रहा है हनुमान जी जब बाहर गए तो राजा उनके चरणों में गिर के बोला की महाराज

" अनजानी लाल मै शरण तुम्हारी मेरी रक्षा कीजे , संकटमोचन नाम तुम्हारा अभय दान मोहे दीजे " हनुमत बोले मत घबराओ चिंता त्यागो सारी , काल अगर स्वयं भी आए रक्षा करून तुम्हारी

हनुमान जी बोले की किसने तुमको मरने को कहा है तो राजा बोला की मै उनका नाम नहीं बतओंगा वरना आप प्रतिज्ञा तोड़ देंगे तो हनुमान जी बोले अरे पागल मै श्री राम भक्त हूँ प्राणों से बढ़ के भी वचन है और फिर नाम नहीं बताओगे तो रक्षा कैसे होगी राजा बोला तो सुनिए महाराज ................. राम जी ने ही वचन दिया है प्राण मेरे लेने का उन्होंने ही संकल्प किया है मृतुदंड देने का ये सुन कर हनुमान जी थर -थर कंपन लागे बोले अरे पागल राजा मै उन चरणों का सेवक हूँ उनसे कैसे तुम्हे बचाऊँ , अरे जिनसे काल स्वयं भय खाता है उनके सामने कैसे आऊंगा पर अब तो वचन दे चूका हूँ हनुमान जी राजा से बोले की जाओ और हाथ में राम नाम का ध्वज लेकर राम का नाम लेते रहो और खुद महल को चले गए वहां राम जी से कहा की प्रभु आज मै आपसे कुछ मांगना चाहता हूँ तो राम जी बोले अवश्य हनुमान जो भी चाहो तुमको अवश्य दूंगा तो हनुमान जी ने सोचा की अगर राजा के लिए जेवंदन मांगूंगा तो राम जी दे देंगे और उनकी प्रतिज्ञा रह जाएगी। अतः मै ये नहीं मांगूंगा , राम जी बोले क्या सोच रहे हो क्या मांगना है तो हनुमान जी बोले "भगवन आधे दिन की छुट्टी दे दीजिये " राम जी बोले बस इतनी सी बात

ठीक है जाओ। हनुमान जी उसी पर्वत पे आगये जहाँ राजा था और बोले की राम जी आरहे हैं मै उनके सामने नहीं आऊंगा तुम राम राम का जाप करते रहो कुछ नहीं होगा राजा ने ऐसा हिकिया। राम जी तो देखा की राजा राम राम राम राम जप रहा है। उन्होंने बाण चलाया पर कोई असर नहीं हुआ तो राम जी वापस महल लौट आये विश्वामित्र ने पुछा की राजा को मारा ? तो राम जी बोले की मै कैसे मरता वो तो राम राम जप रहा है मेरा कोई बाण उसको नहीं मर पा रहा .तो विश्वामित्र बोले की अच्छा है तो मै तुमको श्राप दे देता हूँ तो राम जी बोले नहीं गुरुदेव मै अभी राम बाण लेकर जाता हूँ पर वहां हनुमान जी ने राजा से कहा की राम बाण लेकर प्रभु आरहे हैं अब तुम जय सिया राम जय जय सिया राम कहो राजा वैसे ही कहने लगा राम जी आये तो देखा की ये तो सेता का भक्त बन गया है इसको कैसे मारूं पुनः बाण चलाया पर राजा बच गया , पुनः राम जी महल लौट आये विश्वामित्र को बताया तो वे क्रोध से बोले की अब मै जाता हूँ तो राम जी बोले की नहीं गुरु देव अब मै शक्ति बाण लेकर जाता हूँ हनुमान जी ने कहा की राजन अब तो राम जी शक्ति बाण ला रहे हैं अब क्या करें अब कैसे रक्षा होगी तुम्हारी परन्तु तब तक राजा भक्त और भगवान् के इस सम्बन्ध को समझ चूका था रजा बोला हनुमानजी अब मई जनता हूँ मेरी रक्षा कैसे होगी और जोर जोर से गाने लगा "जय जय सिया राम जय जय हनुमान जय जय हनुमान जय जय हनुमान जय जय सिया राम जय जय हनुमान" राम जी ने जब रजा को हनुमान जी का नाम लेते देखा तो उनको और आश्चर्य हुआ उन्होंने सोचा की अब तो ये हनुमान भक्त बनगया पर फिर भी उन्होंने शक्ति बाण चलाया पर ये क्या रजा को कुछ भी नहीं हुआ । राम जी समझ गए और बोले की हे हनुमान तुम जिसके रक्षक हो उसका समस्त संसार में कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता मई इस रजा को नहीं मर सकता तभी विश्वामित्र वहां ए नारद ने उनको साडी बात बताई तो उन्होंने रजा को क्षमा कर दिया । नारद जी ने कहा की अभी तो सबको राम जी के दर्शन हो रहे है पर कलयुग में ये सौभाग्य किसी को नहीं मिलेगा । इसी लिए मैंने राम से बढ़ कर राम जी के नाम का वर्णन किया है । और जिसके रक्षक हनुमान जी है उसको कोई संकट नहीं आयेगा ................

Tuesday, July 13, 2010


जिनके पराक्रम का गुणगान तीनो लोकों में होता है , धरती और आकाश में दुष्टों का विनाश करने वाले , अथाह सागर जिनके सामने पराजय स्वीकारता है , तीनो कालों में निरंतर विद्यमान और तीनो लोकों में परम पूजनीय , रूद्र के अवतार वीर हनुमान को मै प्रणाम करता हूँ .

Some people says that this image is fake and such image can easily be prepared by computer but the image was published nearly 10 years before and that time such quality image was not possible . This image has been taken from a camera of a man who went to VAISHNO DEVI MANDIR in J&K . There he went in some hill side in a cave and there he found LORD HANUMAN JI reading holy RAMCHARIT MANAS . He captured this image there but soon after he fell down there . This incident was told by one of his friend who went there with him . Man who captured photograph was brought to hospital where he was found dead . This photo became so popular that it was brought by many lack families in all over world . the writing in book HANUMANJI was reading can easily be read . Such चौपाई were also found in sri RAM CHARITMANAS .
रावन,श्री राम,माता सीता द्वारा सागर तट पर पूजा

श्री राम जी जब सागर तट तक ए तो उन्होंने आगे के मार्ग के लिए समुद्र देवता की पूजा का निश्चय किया । इस विधान के लिए अपने इष्ट देव की प्रतिमा की स्थापना का भी विधान था । श्री राम भगवन शिव के परम भक्त थे अतः शिवलिंग की स्थापना की आवश्यकता थी , अतः क्षेत्र के सबसे विद्वान् ब्रह्मिन की आवश्यकता थी । तब श्री राम में रावन को पुजारी बन्ने हेतु निमंत्रण भेजा .रावन को ज्ञात था की विवाहित होने के नाते माता सीता उनकी अर्धांगिनी है अतः उनके बिना कोई अनुष्ठान संपन्न नहीं हो सकता । रावन माता सीता को लेकर सागर तट पर आया और वहां पर संपूर्ण विधि विधान द्वारा यज्ञ और पूजा संपन्न की और पुनः माता सीता को लेकर लंका जाने लगा , चूँकि वह वहां पर पुजारी के रूप में था अतः यजमान होने के नाते श्री राम का धर्म था की वह रावन को कुछ दान दें ।
अतः रावन ने उनसे पुछा की राम इस ब्रह्मिन को क्या दक्षिणा दोगे , श्री राम बोले की अयोध्या के राज कुमार से कितना धन और स्वर्ण चाहता है एक ब्रह्मिन , तो रावन ने उत्तर दिया की वन में रहने वाला कुमार त्रिलोक विजेता और सोने की लंका के रजा को कितना स्वर्ण दे सकता है । इस पर श्री राम चुप हो गए । तब रावन बोला की राम जब मई मरने लग जाऊं तो मेरे अंत समय में तुम मेरे पास आजाना । यही मेरी दक्षिणा होगी ................................

हनुमान और राम भाई-भाई

हनुमान जी की माता अंजनी भगवान शिव की परम भक्त थी । वह प्रतिदिन भगवन शिव की पूजा करती थी । एक दिन उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवन शिव ने उन्हें दर्शन दिए और मनचाहा वर मांगने को कहा । माता अंजनी ने परम भक्त और महा बलशाली पुत्र की कामना की । भगवान उन्हें आशीष देकर कहा की " तुम प्रातः अंजलि की मुद्रा बना कर सूर्य देव की ओर मुह करके कड़ी हो जाना , जब कोई चील तुम्हारी अंजलि में खीर गिरा जाये तो उसे खा लेना उसी से तुम्हारे तेजस्वी पुत्र होगा और यह कहकर वो चले गए ।

दूसरी ओर महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए हवं किया जिसमे स्वयं अग्निदेव ने आकर प्रसाद दिया , तीनो रानियों कौशल्या कैकई और सुमित्रा को एक एक कटोरी खीर मिली परन्तु कैकई की खीर को एक चील ले उडी । माता कोषालय ने अपने हिस्से की आधी खीर कैकई को देदी जिससे राम भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न पैदा हुए ।
जो खीर चील ले गयी थी उसे उसने माता अंजनी के पास गिरा दिया जिसे माता अंजनी ने ग्रहण कर लिया और हनुमान जी का जन्म हुआ ।

इसी प्रकार हनुमान और राम जी एक ही खीर से जन्मे इसी लिए दोनों भाई मने जाते हैं । श्री राम स्वयं कहते हैं की हे हनुमान तुम मुझे लक्ष्मण सामान भाई हो भारत सामान भाई हो ।


दरिया में दीप स्तम्भ तुम , अंधकार में ज्योति तुम , निराश मन की आशा तुम भटके को दिखाओ राह तुम ,धुप से छाओं की आस तुम , ज्ञान की बुझाओ प्यास तुम जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ,
जय कपीश तिहूँ लोक उजागर
  जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीश तिहूँ लोक उजागर
  नदिया जैसी चंचलता , गगन के जैसी अखंडता 
, चन्द्र प्रकाश की शीतलता
पर्वत जैसी निश्चलता , नर्म धुप सी कोमलता ,
 तेरे गुणों की क्या सीमा
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीश तिहूँ लोक उजागर
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ,
जय कपीश तिहूँ लोक उजागर
घोर अँधेरा दूर सवेरा , काल चक्र का कैसा फेरा , दीन हीन को आसरा तेरा साथ मुझे है बस तेरा 
, संकट मोचन तू मेरा , मोक्ष मार्ग तू ही मेरा
  जय हनुमान ज्ञान गुण सागर , जय कपीश तिहूँ लोक उजागर
  जय हनुमान ज्ञान गुण सागर , जय कपीश तिहूँ लोक उजागर
  दरिया में दीप स्तम्भ तुम , अंधकार में ज्योति तुम
निराश मन की आशा तुमभटके को दिखाओ राह तुम
धुप से छाओं की आस तुम , ज्ञान की बुझाओ प्यास तुम
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर , जय कपीश तिहूँ लोक उजागर
  जय हनुमान ज्ञान गुण सागर , जय कपीश तिहूँ लोक उजागर