Search This Blog
Saturday, November 6, 2010
शुभम करोति कल्याणं आरोग्यं धन सम्पदा , शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपद्ज्योतिर नमोः स्तुते
दीपज्योती परब्रमहाः दीप्ज्योतिर जनार्दनः , दीपो हर्तुमे पापम संध्यादीपम नमोः स्तुते
means
The brilliance of lamp light that brings auspiciousness , health and prosperity
Destroy my evil thoughts towards others , my salutation to the flame of the lamp ( so my mind would be pure before the day ends ). The flame of lamp is the essence of the universe , the flame of lamp is embodiment of God . I prostate before the Evening Lamp that takes away my sins..........
जब राम जी की आज्ञा से लक्ष्मण माता सीता को वन में छोड़ने गए तो वहां रथ से उतार के वे माता सीता के पास जाके बोले " हे माता सीता ! मेरे लिए और कोई आज्ञा है ? " तो जनक दुलारी ने कहा "प्रीतस्मिते सौम्य चिरायु जीवः" अर्थात हे पुत्र , हे सौम्य , मेरे पुत्र जैसे देवर मै तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ तुम युगों तक जियो । लक्ष्मण रथ पे लौट के जाने लगे तो जाते हुए पुनः पूछा की माता क्या भैया के लिए कोई आज्ञा है ? वो माता सीता जिनका संस्कार जनक जैसे योगऋषि से जुड़ा था .......उन्होंने पूरे जीवन में ७ (सात) तरह के संबोधन दिए थे श्री राम को 'नाथ' , 'स्वामी' 'प्रिय' , 'प्राण' , 'रघुवंशमणि' , 'रघुवर' , 'राम' । एक संबोधन पहली बार बोली माता सीता उस समय जिसमे उनका क्रोध दिखा । माता ने कहा " वाचास्त्वाया मम वचनात सः राजाः " हे लक्ष्मण " उस रजा " से मेरी ये बात कह देना ..........कितना अधिक क्रुद्ध फूटा होगा माता सीता में । उन्होंने कहा " वाचास्त्वाया मम वचनात सः राजाः , वन्नोविशुद्धाःमपिअत्समक्षम मामलोकवाद श्रवानाधहासी श्रुतस्य किम सतसदृशम कुलस्यम " अर्थात हे लक्ष्मण जाके उस महान रजा से मेरी ये बात कह देना की मुझे अग्नि में प्रज्वल्लित कराने के बाद भी मेरी पवित्रता पे संदेह किया मुझे उनके महान कुल की सब परम्पराएँ पता थीं , बस ये परंपरा मै जानना भूल गयी थी इसका मुझे दुःख है ।
Thursday, August 12, 2010
अच्युत्तम केशवं राम-नारायणं
कृष्ण-दमोदरम वासुदेवं हरिम;
श्रीधरम माधवं गोपिकावल्लभं
जानकी-नायकं रामचंद्रम भजे
अच्युत्तम केशवं सत्यभामाधवं
माधवं श्रीधरम राधिकराधाकम;
इन्दिरामंदिरम चेतसा सुन्दरम
देवकी-नंदनम नन्दजम संदधे
विष्णवे जिष्णवे शाखिने चक्रिने
रुक्मिनीरागिने जनाकीजनाये;
वल्लावीवाल्लाभा यार्चितायात्माने
कम्सविध्वंसिने वंशिने ते नमः
कृष्ण गोविंदा हे राम नारायणा
श्रीपते वसुदेवाजिते श्रीनिधे;
अचुतानंत हे मधावाधोक्षाजा
द्वाराकनायाका द्रौपदी-रक्षाका
रक्षासक्शोभितः सीतायाः शोभितो
दंदाकरान्य भूपुन्यता कारणः;
लक्ष्मनेनान्वितो वनारिः सेवितो
गस्त्यासम्पूजितो राघवः पादुमाम
धेनुकरिश्ताका निश्ताक्रिद्द्वेशिकाह
केशिहा कम्सह्रिद्वंशिको वादकः;
पूतनाकोपकः सूराजखेलानो
बाला-गोपालकः पातु मम सर्वदा
विद्युदुद्योतावन प्रस्फुराद्वाससम
प्रवृदाम्भोदावत प्रोल्लासविग्रहम;
वन्यया मालया शोभितोरास्थालम
लोहितान्घ्रिद्वायाम वरिजाक्षम भजे
कुन्चितैह कुन्तालैर्भ्रजमानानाम
रत्नामौलिम लासत्कुंदालम गंदयोह;
हराकेयूराकम कन्कनाप्रोज्ज्वालम
किन्किनीमंजुलम श्यामलं तम भजे
अच्युतायाशटकम यह पठेद्विश्तादम
प्रेमतः प्रत्यहम पुरुसः सस्प्रुहम
वृत्ततः सुन्दरम कर्त्रिविस्वम्भारस
तस्य वस्योहरी जायतेसत्वरं
Monday, August 9, 2010
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥ ३॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रिधाशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापकारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६ ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥ ८ ॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्त्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शंभु:प्रसीदति ॥९॥
O Ishan! I pray You, the one Who is the lord of all, Who is in eternal Nirvana-bliss, Who is resplendent, Who is omni-present, and Who is Brahman and Ved in totality. I adore You, Who is for self, Who is formless, Who is without change, Who is passionless, Who is like the sky (immeasurable), and Who lives in the sky.||1||
I bow prostrate to You, Who is without a form, Who is the root of sounds, Who is the fourth impersonal state of the Atman, Who is beyond the scope of tongue, knowledge and sense-organs, Who is the Lord, Who is the Lord of Himalaya, Who is fierce, Who is the destroyer of fierce Kala, Who is benevolent, Who is the abode of qualities, and is beyond the universe.||2||
bow to You, Who is white on all like the snow, Who is profound, Who is mind, Who is in the form of living beings, Who has immense splendor and wealth. He has shining forehead with playful and enticing Ganga, He has shiny forehead with a crescent moon, and He has snake garlands in the neck.||3||
I adore Shankara, Who has swaying earrings, Who has beautiful eye on the forehead, Who is spreadout and large, Who is happy at face, Who has a blue-throat, Who is benevolent, Who has a lion-skin around His waist, Who has skull-cap garland, and Who is the dear-Lord of everyone.||4||
I adore the Lord of Bhavani, Who is fierce, Who is immense, Who is mature and brave, Who is beyond everyone, Who is indivisible, Who is unborn, Who is resplendent like millions of sun, Who uproots the three qualities (and makes us dispassionate), Who holds a trident, and Who can be achieved with emotions.||5||
O Destroyer of Kamadev, Who is beyond artwork, Who is auspicious, Who causes the end of the universe, Who always provides bliss to good people, Who destroyed Pura, Who is eternal bliss, Who absolves abundant passion! O Prabhu! Please be happy, be happy.||6||
Those who don't adore the lotus-feet of the Lord of Uma (Shiv), that men don't get happiness, comfort, and peace — in this world or the other worlds after death. O the abode of all the living beings! O Prabhu! Please be happy.||7||
I don't know yoga, japa (chanting of names), or prayers. Still, I am bowing continuously and always to You. O Shambhu! O Prabhu! Save me from the unhappiness due to old age, birth, grief, sins, and troubles. I bow to You, Who is the Lord.||8||
Sunday, August 1, 2010
अर्थात -
I adore Vishnu, the embodiment of Peace, who sleeps on the serpent, Whose naval is the lotus of the Universe Who is the Lord of the Gods
तेरी अमृत भरी लहरों को क्या मालूम गंगा माँ , समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है
हर एक खाली पड़े आलिन्द तेरी याद आती है ,सुबह के ख्वाब के मानिंद तेरी याद आती है
hello he hi ,सुन के तो नहीं आती मगर हमसे , कोई कहता है जब " जय हिंद " तेरी याद आती है
कोई देखे जनम पत्री तो तेरी याद आती है , कोई व्रत रख ले सावित्री तो तेरी याद आती है
अचानक मुश्किलों में हाथ जोड़े आँख मूंदे जब , कोई गाता हो गायत्री तो तेरी याद आती है
सुझाये माँ जो मुहूर्त तो तेरी याद आती है , हँसे जब बुद्ध की मूरत तो तेरी याद आती है
कहीं डॉलर के पीछे छिप गए भारत के नोटों पर , दिखे गाँधी की जो सूरत तो तेरी याद आती है
अगर मौसम हो मनभावन तो तेरी याद आती है , झरे मेघों से गर सावन तो तेरी याद आती है
कहीं रहमान की जय हो को सुन कर गर्व के आंसू करें आँखों को जब पावन तो तेरी याद आती है
डा कुमार विश्वास
Wednesday, July 28, 2010
जिस स्थान पे भगवान की कथा होती है उस स्थान पे बैठने वालों को अपने कान और मुह दोनों खोलने चाहिए। अर्थात कथा को ध्यान से सुनना चाहिए तथा भगवान की जय भी बोलनी चाहिए । यदि भक्ति के लिए न हो तो अपने स्वार्थ के लिए ही बोलना चाहिए। इसके पीछे भी एक रोचक तथ्य है । जहाँ पर भी भगवान की कथा होती है उस स्थान पे एक चुम्बकत्व उत्पन्न हो जाता है । और संसार का सब यश वैभव सम्पन्नता और सुख आते है । सभी ३३ करोड़ देवी देवता आते हैं । और साथ ही साथ संसार का पाप लोभ बुराई और द्वेष भी आते हैं । ये भी भागवान से कहते है की हमको भी भीतर आने दीजिये । भगवान कहते है की तुमको तो मेरे नाम से चिढ है । इसलिए जो भी कथा न सुन रहा हो उसके कान में जाकर बैठ जा जो जय न कहे उसके मुह में जा के बैठ जा और उसके साथ उसके घर चला जा और उसको दुखी कर । अतः भगवान के भजम में सदा मन और आत्मा शुद्ध करके रहना चाहिए ।
Sanjivani Booti – which Lord Hanuman brought to save the life of Lord Ram's brother Lakshman – is being researched upon by scientists for its survival instincts. Sanjeevani means ‘one that infuses life.’ The Sanjeevani plant is well known for its medicinal properties and is mentioned in Ayurveda and other ancient texts.
National Botanical Research Institute (NBRI) is trying to identify the gene that helps Sanjivani Booti to survive severe droughts. The plant existed before 300 million years and comes under a group of plants which were the first vascular plants on earth.
When there is no moisture the plant curls up and assumes the form of a brown crust. Sanjivani Booti regains its original form when it comes in contact with water or moisture. The plant is found throughout
Om Parvat (or Adi Kailash, or Chhota Kailash, or Baba Kailash, or Jonglingkong) is an ancient holy Hindu Himalayan mountain peak at an altitude of 6191 m. It's part of the Himalayan Range lying in the Darchula district of western, Nepal near Sinla pass, similar to Mount Kailash in Tibet.
The snow deposition pattern gives the impression of 'AUM' (ॐ) written over it, which is a sacred Hindu Mantra or chant. Beautiful 'Parvati lake' and 'Jonglingkong lake' are situated near Om Parvat. The Jonglingkong lake is sacred like Mansarovar to the Hindus.
The opposite to this peak there is a mountain called Parwati Muhar, and snow over it shines like crown in sunlight. This peak was climbed for the first time by an Indo-British team including Martin Moran, T. Rankin, M. Singh, S. Ward, A. Williams and R. Ausden. Climbers did not climb above 6,000 M, due to sacred nature of the peak!
Monday, July 26, 2010
हनुमान जी को सदा अजर और अमर रहने का वरदान प्राप्त है भगवन श्री राम और माता सीता से । अजर अर्थात जिसमे कभी जरावस्था यानि की वृद्धावस्था न ए और अमर अर्थात जो कभी न मरे । लव कुश के जन्म के पश्चात् माता सीता धरती माता में समाहित होने जा रहीं थी और भगवन राम भी सरयू नदी में जलसमाधि ले कर बैकुंठ धाम जाने को तैयार थे । जब हनुमान जी को ये बात पता चली तो वो अत्यंत ही दुखी मन से दौड़ कर भगवान् के पास गए और बोले की भगवन आप कहीं मत जाइये वर्ना मै यहाँ क्या करूंगा । माता सीता से बोले की माता मै भी आपके साथ ही जाऊँगा वरना आप कहीं मत जाइये । माता सीता बोली कि हनुमान जन्म लेने वाले को संसार से जाना ही पड़ता है , परन्तु तुम तो सदा ही अजर और अमर हो । तुमको तो स्वयं प्रभु ने ये वरदान दिया है । हनुमान बोले कि तो मै आज्ये वरदान और साडी पदवी को त्याग दूंगा । ये सुन माता सीता श्री राम से बोली कि प्रभु ये हनुमान तो अपना अमरत्व त्याग रहा है। राम जी बोले कि अरे पागल ये अमरत्व पाने को देवता भी तरसते हैं बड़े बड़े योगी इसके लिए वर्षों तपस्या करते हैं पर नहीं पासकते और तुम इसको त्याग रहे हो । हनुमान जी बोले कि भगवन आपसे दूर रह कर मै भला कैसे जीवित रह सकता हूँ । राम जी बोले के हनुमान अभी तो त्रेतायुग है इसके बाद द्वापर युग में पाप और बढ़ जाये गा और कलयुग में तो पाप कि कोई सीमा ही नहीं होगी । तब संसार में तुम ही सबकि रक्षा करना , प्रभु भक्तों को संरक्षण देना । हनुमान जी बोले कि हे प्रभु अगर आपकी ऐसी आगया है तो मै सदा धरती पे ही रहूँगा परन्तु मै आपसे कुछ मांगना चाहता हूँ आप देंगे ? राम जी बोले कि अवश्य दूंगा तो हनुमानजी बोले कि मुझको ये आशीर्वाद दें कि मै जिस समय में जिस कल में जिस स्थान पे भी आपकी पूजा या कथा हो रही हो वहां जाकर विराज सकू । माता सीता बोली दे दीजिये वरदान प्रभु तो राम जी बोले कि साईट तुम नहीं जानती कि ये क्या मांग रहा है । ये अनगिनत शरीर और काल चक्र से मुक्ति मांग रहा है ये भूत भविष्य वर्त्तमान सब कल में एक साथ उपस्थित रहना चाहता है , माता सीता बोली कि तो क्या हुआ मेरा सबसे प्रिय है हनुमान और आपका परम भक्त है इसको ये वरदान अवश्य दीजिये । तब श्री राम जी ने उनको ये वरदान दिया और हनुमान जी जहाँ कहीं भी श्री राम जी कि कथा होती है वहां आकर विराजमान होते हैं ।
घंटाकर्ण देवता
पूजा के समय सभी घंटा अथवा घंटी बजाते हैं परन्तु इस के वास्तविक महत्व से परिचित नहीं है । घंटा वास्तव में घंटाकर्ण देवता होते हैं । और पूजा में विशेषकर आरती के समय इसे बजाने का विशेष महत्त्व है । इसके पीछे एक प्राचीन कथा है । घंटाकर्ण वास्तव में एक राक्षस था । उसके कानो में बड़े बड़े घंटे लगे हुए थे जो बहुत आवाज करते थे और वो हमेशा उसको बजता चलता था । भगवान् विष्णु का वो घोर विरोधी था और भगवन शिव का परम भक्त था । एक दिन वो कैलाश पर्वत पे जाकर भगवन शिव से बोला की भगवन अब मुझको राक्षस योनी से मुक्त करके मोक्ष प्रदान करें । तो भगवन शिव बोले बहुत अच्छी बात है ये तो , तुम बद्रिकारेश्वरधाम में जाकर भगवन विष्णु से आग्रह करना वो ही तुमको मोक्ष प्रदान करेंगे । नारायण से तो वो बैर रखता था पर भगवन शिव की आज्ञा से वो चला गया .भगवन विष्णु को ज्ञात हुआ तो वो भगवन शिव का रूप बना के बैठ गए वहां पर । जब राक्षस ने देखा की यहाँ पर विष्णु तो है नहीं पर मेरे आराध्य देव भगवन शुव बैठे है तो उसने अपने कानो के घंटे बजाने बंद कर दिए । और बड़ी देर तक वहां बैठा रहा । वहीँ ऊपर नारद जी आगये और भगवन विष्णु को पहचान के जोर से बोले
नारायण नारायण । जैसे ही राक्षस ने ये सुना वो चौंक गया की अरे यहाँ नारायण कहाँ है । उसने जैसे ही भगवन शिव की ओर देखा तो देखा की वहां भगवन विष्णु बैठे है । भगवन बोले की हे घंटाकर्ण अनजाने में ही सही तुमने भक्ति भाव से मेरा सम्मान किया है । राक्षस बोला की हे प्रभु तब कुछ ऐसा करिए की मै राक्षस होने के कारण संसार में तुच्छ न मन जाऊं । भगवन बोले की हे घंटाकर्ण आजसे तुम सदा मंदिरों में वास करोगे । मेरी पूजा तुम्हारे नाद के बिना अधिरी होगी । तो वहां पर भगवन का वहां गरुड़ बोला की प्रभु आप इसका उद्धार कर दिए कुछ कृपा मुझपर भी कर दीजिये तो भगवन बोले की गरुड़ तुम आजसे इस घंटाकर्ण के ऊपर विराजोगे । जहाँ इसका नाद होगा और तुम इसपर सवार होगे वहां मै स्वयं आऊंगा । इसी लिए हर पूजा में घंटे का नाद अवश्य करना चाहिए , घंटे पर इसी लिए कोई अन्य सजावट नहीं होती मात्र ऊपर गरुड़ होता है ।
Sunday, July 25, 2010
एक बार श्री राम जी ने अपने दरबार में दूर दूर से राजाओं को बुलाया था । उनको अछे राज्य और राजनीती के विषय में बताने के लिए। महल के एक द्वार पर जहाँ से रजा महाराजा अन्दर आरहे थे वहीँ पर नारद जी आकार खड़े हो गए और वहां पे एक राजा को रोक कर उससे बात करने लग गए । उन्होंने राजा को बोला की अन्दर जाना तो वहां पे रामजी को प्रणाम करना और दुसरे ऋषियों को भी पर विश्वामित्र जी को मत प्रणाम करना । राजा ने पुछा ऐसा क्यों भगवन क्यों नहीं करूंगा उनको । तो नारद जी ने कहा की तुम क्षत्रिय हो और विश्वामित्र भी तो उनको प्रणाम करने की ज़रुरत नहीं है । राजा बेचारा आगया उनकी बैटन में और उसने ऐसा ही किया । इस कारन से विश्वामित्र जी बहुत गुस्सा हुए , और राम जी से बोले की तुम्हारे दरबार में मेरा अपमान हुआ है अतः सूरज ढलने से पहले तुम राजा को मृतुदंड दो वरना मई तुमको श्राप दूंगा । राम जी बोले की अभी वनवास से लौटा हूँ भगवन आप क्रोध न करें मई आज संध्या से पहले इसको मार दूंगा। राजा ने ये सुना तो घबराकर नारद जी के पास आये और बोले की ये क्या किया प्रभु अब मेरे प्राण कैसे बचेंगे । तब नारद जी बोले " मत घबराओ प्यारे , चिंता क्यों करते हो । कल तो शाम तो दूर है प्यारे अभी क्यों मरते हो । ध्यान लगा के सुन लो जो मै तुम्हे बातों । बाल न बांका होगा समझो जो समझाऊँ । हनुमान जी के घर जाओ , अंजनी माँ को शीश नवाओ । उनको साडी बात बताना ,कहना मैया मुझे बचाओ । हनुमान जी तुम्हरी रक्षा करेंगे मेरे प्यारे , संकट मोचन नाम है उनका कष्ट मिटावन हारे। " राजा ने ऐसा ही किया अंजनी माँ के पास जाके अपनी सारी कथा बताई और प्राण बचने के कहा । माता ने कहा की मेरा पुत्र जब घर आयेगा तो उससे कहूँगी अभी तुम बाहर जाके बैठो। हनुमान जी जब घर ए तो माता अंजनी ने प्यार से भोजन कराया और कहा की हनुमान आज मै तुमसे कुछ मांगना चाहती हूँ । हनुमान जी बोले वाह माता आज तो बड़ा ही शुभ दिन है मांगो माता जो मांगोगी दूंगा प्राण भी मांगोगी तो चरणों में रख दूंगा । अंजनी माता ने कहा की एक राजा ने हमारी शरण ली है । उसको किसी ने मारने की प्रतिज्ञा की है । तुमको उसकी रक्षा करनी होगी । हनुमान जी हंस के बोले माता बस इतनी सी बात मै तुम्हारे चरण छु कर श्री राम जी की सौगंध खाता हूँ की यदि उस राजा के प्राणों की रक्षा करूंगा . हनुमान जी ने पुछा की माँ वो राजा है कहाँ तो अंजनी माँ बोली की बाहर प्रतीक्षा कर रहा है । हनुमान जी जब बाहर गए तो राजा उनके चरणों में गिर के बोला की महाराज
" अनजानी लाल मै शरण तुम्हारी मेरी रक्षा कीजे , संकटमोचन नाम तुम्हारा अभय दान मोहे दीजे " हनुमत बोले मत घबराओ चिंता त्यागो सारी , काल अगर स्वयं भी आए रक्षा करून तुम्हारी ।
हनुमान जी बोले की किसने तुमको मरने को कहा है तो राजा बोला की मै उनका नाम नहीं बतओंगा वरना आप प्रतिज्ञा तोड़ देंगे तो हनुमान जी बोले अरे पागल मै श्री राम भक्त हूँ प्राणों से बढ़ के भी वचन है और फिर नाम नहीं बताओगे तो रक्षा कैसे होगी । राजा बोला तो सुनिए महाराज ................. राम जी ने ही वचन दिया है प्राण मेरे लेने का उन्होंने ही संकल्प किया है मृतुदंड देने का । ये सुन कर हनुमान जी थर -थर कंपन लागे । बोले अरे पागल राजा मै उन चरणों का सेवक हूँ उनसे कैसे तुम्हे बचाऊँ , अरे जिनसे काल स्वयं भय खाता है उनके सामने कैसे आऊंगा । पर अब तो वचन दे चूका हूँ । हनुमान जी राजा से बोले की जाओ और हाथ में राम नाम का ध्वज लेकर राम का नाम लेते रहो । और खुद महल को चले गए । वहां राम जी से कहा की प्रभु आज मै आपसे कुछ मांगना चाहता हूँ तो राम जी बोले अवश्य हनुमान जो भी चाहो तुमको अवश्य दूंगा तो हनुमान जी ने सोचा की अगर राजा के लिए जेवंदन मांगूंगा तो राम जी दे देंगे और उनकी प्रतिज्ञा रह जाएगी। अतः मै ये नहीं मांगूंगा , राम जी बोले क्या सोच रहे हो क्या मांगना है तो हनुमान जी बोले "भगवन आधे दिन की छुट्टी दे दीजिये " राम जी बोले बस इतनी सी बात
ठीक है जाओ। हनुमान जी उसी पर्वत पे आगये जहाँ राजा था और बोले की राम जी आरहे हैं मै उनके सामने नहीं आऊंगा तुम राम राम का जाप करते रहो कुछ नहीं होगा । राजा ने ऐसा हिकिया। राम जी ए तो देखा की राजा राम राम राम राम जप रहा है। उन्होंने बाण चलाया पर कोई असर नहीं हुआ तो राम जी वापस महल लौट आये विश्वामित्र ने पुछा की राजा को मारा ? तो राम जी बोले की मै कैसे मरता वो तो राम राम जप रहा है मेरा कोई बाण उसको नहीं मर पा रहा .तो विश्वामित्र बोले की अच्छा है तो मै तुमको श्राप दे देता हूँ तो राम जी बोले नहीं गुरुदेव मै अभी राम बाण लेकर जाता हूँ पर वहां हनुमान जी ने राजा से कहा की राम बाण लेकर प्रभु आरहे हैं । अब तुम जय सिया राम जय जय सिया राम कहो । राजा वैसे ही कहने लगा । राम जी आये तो देखा की ये तो सेता का भक्त बन गया है इसको कैसे मारूं पुनः बाण चलाया पर राजा बच गया , पुनः राम जी महल लौट आये विश्वामित्र को बताया तो वे क्रोध से बोले की अब मै जाता हूँ तो राम जी बोले की नहीं गुरु देव अब मै शक्ति बाण लेकर जाता हूँ । हनुमान जी ने कहा की राजन अब तो राम जी शक्ति बाण ला रहे हैं अब क्या करें अब कैसे रक्षा होगी तुम्हारी । परन्तु तब तक राजा भक्त और भगवान् के इस सम्बन्ध को समझ चूका था रजा बोला हनुमानजी अब मई जनता हूँ मेरी रक्षा कैसे होगी और जोर जोर से गाने लगा "जय जय सिया राम जय जय हनुमान जय जय हनुमान जय जय हनुमान जय जय सिया राम जय जय हनुमान" राम जी ने जब रजा को हनुमान जी का नाम लेते देखा तो उनको और आश्चर्य हुआ उन्होंने सोचा की अब तो ये हनुमान भक्त बनगया पर फिर भी उन्होंने शक्ति बाण चलाया पर ये क्या रजा को कुछ भी नहीं हुआ । राम जी समझ गए और बोले की हे हनुमान तुम जिसके रक्षक हो उसका समस्त संसार में कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता मई इस रजा को नहीं मर सकता तभी विश्वामित्र वहां ए नारद ने उनको साडी बात बताई तो उन्होंने रजा को क्षमा कर दिया । नारद जी ने कहा की अभी तो सबको राम जी के दर्शन हो रहे है पर कलयुग में ये सौभाग्य किसी को नहीं मिलेगा । इसी लिए मैंने राम से बढ़ कर राम जी के नाम का वर्णन किया है । और जिसके रक्षक हनुमान जी है उसको कोई संकट नहीं आयेगा ................