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Saturday, November 6, 2010


जब राम जी की आज्ञा से लक्ष्मण माता सीता को वन में छोड़ने गए तो वहां रथ से उतार के वे माता सीता के पास जाके बोले " हे माता सीता ! मेरे लिए और कोई आज्ञा है ? " तो जनक दुलारी ने कहा "प्रीतस्मिते सौम्य चिरायु जीवः" अर्थात हे पुत्र , हे सौम्य , मेरे पुत्र जैसे देवर मै तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ तुम युगों तक जियोलक्ष्मण रथ पे लौट के जाने लगे तो जाते हुए पुनः पूछा की माता क्या भैया के लिए कोई आज्ञा है ? वो माता सीता जिनका संस्कार जनक जैसे योगऋषि से जुड़ा था .......उन्होंने पूरे जीवन में (सात) तरह के संबोधन दिए थे श्री राम को 'नाथ' , 'स्वामी' 'प्रिय' , 'प्राण' , 'रघुवंशमणि' , 'रघुवर' , 'राम' । एक संबोधन पहली बार बोली माता सीता उस समय जिसमे उनका क्रोध दिखामाता ने कहा " वाचास्त्वाया मम वचनात सः राजाः " हे लक्ष्मण " उस रजा " से मेरी ये बात कह देना ..........कितना अधिक क्रुद्ध फूटा होगा माता सीता मेंउन्होंने कहा " वाचास्त्वाया मम वचनात सः राजाः , वन्नोविशुद्धाःमपिअत्समक्षम मामलोकवाद श्रवानाधहासी श्रुतस्य किम सतसदृश कुलस्यम " अर्थात हे लक्ष्मण जाके उस महान रजा से मेरी ये बात कह देना की मुझे अग्नि में प्रज्वल्लित कराने के बाद भी मेरी पवित्रता पे संदेह किया मुझे उनके महान कुल की सब परम्पराएँ पता थीं , बस ये परंपरा मै जानना भूल गयी थी इसका मुझे दुःख है

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