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Thursday, August 12, 2010
अच्युत्तम केशवं राम-नारायणं
कृष्ण-दमोदरम वासुदेवं हरिम;
श्रीधरम माधवं गोपिकावल्लभं
जानकी-नायकं रामचंद्रम भजे
अच्युत्तम केशवं सत्यभामाधवं
माधवं श्रीधरम राधिकराधाकम;
इन्दिरामंदिरम चेतसा सुन्दरम
देवकी-नंदनम नन्दजम संदधे
विष्णवे जिष्णवे शाखिने चक्रिने
रुक्मिनीरागिने जनाकीजनाये;
वल्लावीवाल्लाभा यार्चितायात्माने
कम्सविध्वंसिने वंशिने ते नमः
कृष्ण गोविंदा हे राम नारायणा
श्रीपते वसुदेवाजिते श्रीनिधे;
अचुतानंत हे मधावाधोक्षाजा
द्वाराकनायाका द्रौपदी-रक्षाका
रक्षासक्शोभितः सीतायाः शोभितो
दंदाकरान्य भूपुन्यता कारणः;
लक्ष्मनेनान्वितो वनारिः सेवितो
गस्त्यासम्पूजितो राघवः पादुमाम
धेनुकरिश्ताका निश्ताक्रिद्द्वेशिकाह
केशिहा कम्सह्रिद्वंशिको वादकः;
पूतनाकोपकः सूराजखेलानो
बाला-गोपालकः पातु मम सर्वदा
विद्युदुद्योतावन प्रस्फुराद्वाससम
प्रवृदाम्भोदावत प्रोल्लासविग्रहम;
वन्यया मालया शोभितोरास्थालम
लोहितान्घ्रिद्वायाम वरिजाक्षम भजे
कुन्चितैह कुन्तालैर्भ्रजमानानाम
रत्नामौलिम लासत्कुंदालम गंदयोह;
हराकेयूराकम कन्कनाप्रोज्ज्वालम
किन्किनीमंजुलम श्यामलं तम भजे
अच्युतायाशटकम यह पठेद्विश्तादम
प्रेमतः प्रत्यहम पुरुसः सस्प्रुहम
वृत्ततः सुन्दरम कर्त्रिविस्वम्भारस
तस्य वस्योहरी जायतेसत्वरं
Monday, August 9, 2010
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥ ३॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रिधाशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापकारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६ ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥ ८ ॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्त्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शंभु:प्रसीदति ॥९॥
O Ishan! I pray You, the one Who is the lord of all, Who is in eternal Nirvana-bliss, Who is resplendent, Who is omni-present, and Who is Brahman and Ved in totality. I adore You, Who is for self, Who is formless, Who is without change, Who is passionless, Who is like the sky (immeasurable), and Who lives in the sky.||1||
I bow prostrate to You, Who is without a form, Who is the root of sounds, Who is the fourth impersonal state of the Atman, Who is beyond the scope of tongue, knowledge and sense-organs, Who is the Lord, Who is the Lord of Himalaya, Who is fierce, Who is the destroyer of fierce Kala, Who is benevolent, Who is the abode of qualities, and is beyond the universe.||2||
bow to You, Who is white on all like the snow, Who is profound, Who is mind, Who is in the form of living beings, Who has immense splendor and wealth. He has shining forehead with playful and enticing Ganga, He has shiny forehead with a crescent moon, and He has snake garlands in the neck.||3||
I adore Shankara, Who has swaying earrings, Who has beautiful eye on the forehead, Who is spreadout and large, Who is happy at face, Who has a blue-throat, Who is benevolent, Who has a lion-skin around His waist, Who has skull-cap garland, and Who is the dear-Lord of everyone.||4||
I adore the Lord of Bhavani, Who is fierce, Who is immense, Who is mature and brave, Who is beyond everyone, Who is indivisible, Who is unborn, Who is resplendent like millions of sun, Who uproots the three qualities (and makes us dispassionate), Who holds a trident, and Who can be achieved with emotions.||5||
O Destroyer of Kamadev, Who is beyond artwork, Who is auspicious, Who causes the end of the universe, Who always provides bliss to good people, Who destroyed Pura, Who is eternal bliss, Who absolves abundant passion! O Prabhu! Please be happy, be happy.||6||
Those who don't adore the lotus-feet of the Lord of Uma (Shiv), that men don't get happiness, comfort, and peace — in this world or the other worlds after death. O the abode of all the living beings! O Prabhu! Please be happy.||7||
I don't know yoga, japa (chanting of names), or prayers. Still, I am bowing continuously and always to You. O Shambhu! O Prabhu! Save me from the unhappiness due to old age, birth, grief, sins, and troubles. I bow to You, Who is the Lord.||8||
Sunday, August 1, 2010
अर्थात -
I adore Vishnu, the embodiment of Peace, who sleeps on the serpent, Whose naval is the lotus of the Universe Who is the Lord of the Gods
तेरी अमृत भरी लहरों को क्या मालूम गंगा माँ , समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है
हर एक खाली पड़े आलिन्द तेरी याद आती है ,सुबह के ख्वाब के मानिंद तेरी याद आती है
hello he hi ,सुन के तो नहीं आती मगर हमसे , कोई कहता है जब " जय हिंद " तेरी याद आती है
कोई देखे जनम पत्री तो तेरी याद आती है , कोई व्रत रख ले सावित्री तो तेरी याद आती है
अचानक मुश्किलों में हाथ जोड़े आँख मूंदे जब , कोई गाता हो गायत्री तो तेरी याद आती है
सुझाये माँ जो मुहूर्त तो तेरी याद आती है , हँसे जब बुद्ध की मूरत तो तेरी याद आती है
कहीं डॉलर के पीछे छिप गए भारत के नोटों पर , दिखे गाँधी की जो सूरत तो तेरी याद आती है
अगर मौसम हो मनभावन तो तेरी याद आती है , झरे मेघों से गर सावन तो तेरी याद आती है
कहीं रहमान की जय हो को सुन कर गर्व के आंसू करें आँखों को जब पावन तो तेरी याद आती है
डा कुमार विश्वास